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सामान्य अध्ययन-3: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।
संदर्भ:
अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर अपने दो सप्ताह के प्रवास के दौरान, अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष में टार्डिग्रेड्स के पुनरुद्धार, अस्तित्व और प्रजनन पर एक वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे।
अन्य संबंधित जानकारी
- वैज्ञानिक टार्डिग्रेड्सको ‘टन’ (Tun) अवस्था में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर ले जाएंगे, जहाँ उन्हें पुनर्जीवित कर अंतरिक्ष विकिरण और सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण के उनके जैविक प्रक्रियाओं पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाएगा।
- टार्डिग्रेड्सवर्ष 2007 से अंतरिक्ष अभियानों का हिस्सा रहे हैं, जब लगभग 3,000 मॉस पिगलेट्स अर्थात टार्डिग्रेड्सयूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के फोटोन-M3 मिशन के माध्यम से अंतरिक्ष की यात्रा पर भेजे गए थे।
टार्डिग्रेड्स
- टार्डिग्रेड्स, जिन्हें “वॉटर बियर्स” के नाम से भी जाना जाता है, बेहद सुदृढ़ जलीय जीव हैं जो लगभग 600 मिलियन वर्षों से अस्तित्व में हैं — अर्थात् डायनासोरों के पृथ्वी पर आने से भी लगभग 400 मिलियन वर्ष पूर्व।
- वे अब तक हुई सभी पांच प्रमुख विलुप्तीकरणों की घटनाओं से बच गए हैं, और वैज्ञानिकों का मानना है कि मानवता के विलुप्त होने के बाद भी वे लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं।
- वयस्क अवस्था में टार्डिग्रेड्स सामान्यतः लगभग 0.5 मिमी लंबे होते हैं। इनके चार जोड़े पैर होते हैं, और प्रत्येक पैर में 4 से 6 पंजे होते हैं।
- इनके पास एक विशेष प्रकार का मुख भी होता है, जिसकी सहायता से वे पौधों की कोशिकाओं, शैवाल तथा अन्य सूक्ष्म अकशेरुकी जीवों से पोषक तत्वों को चूसकर ग्रहण करते हैं।
- टार्डिग्रेड्स सबसे ऊंचे पर्वतों से लेकर सबसे गहरे महासागरों तक लगभग हर जगह पाए जा सकते हैं।
- हालाँकि, टार्डिग्रेड्स का सबसे सामान्य पर्यावास काई (mosses) और लाइकेन (lichens) की सतह पर पाई जाने वाली पतली जल-परत होती है, और इसी कारण इन्हें “मॉस पिगलेट्स” के नाम से भी जाना जाता है।
टार्डिग्रेड्स के अध्ययन का महत्व
- टार्डिग्रेड्स अत्यंत कठोर और सहनशील जीव हैं। ये अत्यधिक विषम परिस्थितियों जैसे -272.95 डिग्री सेल्सियस तक के अत्यल्प तापमान, 150 डिग्री सेल्सियस तक की तीव्र ऊष्मा, अंतरिक्ष के निर्वात एवं पराबैंगनी विकिरण, और महासागर की लगभग 4 किलोमीटर गहराई पर पाए जाने वाले अत्यधिक दाब में भी जीवित रह सकते हैं ।
- एक रिपोर्ट में तो यह भी कहा गया है कि फ्रीजर में 30 साल तक रखने के बाद भी वे जीवित रह सकते हैं।
- टार्डिग्रेड्स के जीवित रहने के तंत्र की बेहतर समझ के संभावित रूप से कई अनुप्रयोग हो सकते हैं: वैज्ञानिकों को अधिक लचीली फसलें विकसित करने में मदद करने से लेकर उन्नत सनस्क्रीन बनाने तक तथा प्रत्यारोपण के लिए मानव ऊतकों और अंगों को संरक्षित करने तक।
- टार्डिग्रेड्स की लचीली प्रकृति:
- टार्डिग्रेड्स की अद्भुत सहनशक्ति का रहस्य “क्रिप्टोबायोसिस” नामक अवस्था में छिपा है, जिसमें प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों के दौरान ये जीव अपनी चयापचय प्रक्रिया को लगभग पूर्णतः स्थगित कर देते हैं।
- ये अपने चयापचय को सामान्य दर के 0.01% से भी कम तक घटा सकते हैं और अपने शरीर में जल की मात्रा को 95% से अधिक तक कम कर लेते हैं। इस अवस्था को “ऐनहाइड्रोबायोसिस” कहा जाता है।
- ऐनहाइड्रोबायोसिस और क्रिप्टोबायोसिस दोनों ही अवस्थाएँ टार्डिग्रेड्स को एक अत्यधिक टिकाऊ और संकुचित अवस्था— जिसे “टन” (tun) कहा जाता है — में प्रवेश करने की अनुमति देती हैं, जिसमें वे अत्यंत विषम परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम होते हैं।
- साथ ही, ये जीव कुछ विशिष्ट प्रोटीन जैसे साइटोप्लाज़्मिक-एबंडेंट हीट-सॉल्युबल (CAHS) प्रोटीन का उत्पादन करते हैं, जो इनके अद्भुत लचीलेपन का प्रमुख आधार माने जाते हैं।
- ये प्रोटीन उनकी कोशिकाओं के भीतर एक जेल-सदृश संरचना का निर्माण करते हैं, जो कांच जैसी ठोस अवस्था (vitrification) में परिवर्तित होकर कोशिका के आवश्यक अवयवों को क्षरण से सुरक्षित रखते हैं। इसी कारण वे अत्यधिक तापमान, विकिरण तथा अंतरिक्ष के निर्वात जैसी चरम परिस्थितियों को भी सहन कर पाने में सक्षम होते हैं।
वॉयेजर टार्डिग्रेड्स प्रयोग
- इस प्रयोग का उद्देश्य उन जीनों की पहचान करना है जो टार्डिग्रेड्स को लचीला बनाते हैं, विशेष रूप से अंतरिक्ष में उनके जीवित रहने और डीएनए की मरम्मत के पीछे के आणविक तंत्रों की पहचान करना है।
- इससे वैज्ञानिकों को लंबी अवधि के अंतरिक्ष मिशनों के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा के लिए रणनीति विकसित करने तथा विस्तारित अंतरिक्ष यात्रा के लिए जैविक सामग्रियों को संरक्षित करने में मदद मिलेगी।
- टार्डिग्रेड के जीवित रहने के गुणों से अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष विकिरण से बचाने तथा लम्बे मिशनों के दौरान मांसपेशियों और हड्डियों की क्षति को रोकने के तरीके विकसित करने में मदद मिल सकती है।
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